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अध्यात्मगीता.
१५३
पिण जीवे छे. एहवी रीते त्रणे काल एक रूप शाश्वतो वर्त्ते तेहने नामजीव कहिये || १ ||
अने स्थापनाजीव कहतां जीव एहवा अक्षर लिखीने थापवा, ते संग्रह नयने मते असद्भाव स्थापना रूप जीव जाणवो. अने मांचा नीवाणमां जीव ते संग्रह नयने मते सद्भाव स्थापना रूप जीव जाणवो ॥ २॥
अने द्रव्यजीव कहतां रिजु व्यवहार नयने मते एकेद्री थकी पंचेंद्री पर्यंत पहिले गुणस्थाने अनाउपयोगे मिध्यात्व भावे वर्त्ते तेहने द्रव्यजीव कहिये. ( अणुवओगो दृवं ) ए अनुयोग द्वार सूत्रनो वचन हे ॥ ३ ॥
अने भावजीव कहतां शब्द नयने मते चौथा गुणस्थान सुं मांडी, यावत् छठा सातमा
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