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आगमसार.
द्रव्य निक्षेपो जाणवो एटले अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्य जीव छ " अणुवओगो दई" इति अनुयोगद्वार वचनात्. वली कह्यं छे जे सिद्धान्त वांचतां पूछतां पद अक्षर मात्रा शुद्ध अर्थ करे छे अने गुरु मुखे सद्दहे छे ते पण शुद्ध निश्चये सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्य निक्षेपामां छे. जे भाव विना द्रव्यपणो छे ते पुण्य बंधनु कारण छे पण मोक्षद् कारण नथी एटले ज करणी रूप कष्ट तपस्या करे के अने जीव अजीव सत्ता ओलखी नथी तेने भगवती मूत्रमा अवती तथा अपञ्चख्खाणी कह्या छे, तथा जे एकली पाय करणी करे छे अने पोते साधु कहेवरावे
ते मृषवादी छ एम उत्तराध्ययन सूत्रमा
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