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गुणस्थानक विचार.
देवकाद्रव्य मनुष्यपणे जाणि तथा जाण्या विना खाधा होवे अथवा अविधि वावर्या होवे तथा देवका उपर अन्याय हुकम कर्या होवे, अथवा देवकी वस्तु वावरीने पोताना यश बोलाव्या होवे, देवका दोकडा व्याजे राखी थोडो व्याज भरी आप्यो होवे अने घणो लाभ लीघो होवे, तथा बीजो पण देवी इंद्री सुख यशवडाई प्रमुख जे करी eta तथा अरिहंत देव ते सांसारिक कामे मान्या इछ्या होवे ते मने बचने कायाए करी मिळामिदुकडं. हिने माहारे ए कार्य अशुद्धाचरणरूप न करनुं आज पछी माहारो आत्मा अनंतगुणमयी प्रगट करवानी रुचि करवी श्रीअरिहंतनो को मार्ग तहत करी
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