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गुणस्थानकविचार. २५७ शमावीने कपायना उदयरहीत छे ते इग्यारमे
आवे ते 'यथाख्यात चारित्र पामे, एहने चोवीस संपरायकी क्रिया उतरी एकइरियावहिकी क्रिया रहे. प्रकृति तथा परदेश ए व बंध रह्या छे हेतु न बांछे, बंध एक मातावेदनीनो छे, ध्यान शुक्ल छे ए गुणठाणे जे जीव मरण पाम्या पछी चोथे गुणठाणे आवे ते देवता लवसत्तमीया थाए, एकावतारी थाए. अथवा कोइक जीव अगीयारमे गुणठाणे उपशांत अद्वाते जई पाछो पडे ते इग्यारमाथी दशमे आवे दशमाथी नवमे आवे नवमेथी आठमे आवे आठमेथी सातमे आवे सातमेथी
१ पड़ी पाछो क्षपक श्रेणिये चढी.
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