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१३० अध्यात्मगीता. एक सिद्ध आश्रय जे सिद्धि वर्या तेहनी आदि छे. ते आदि मे सिद्धि वर्या पिण तेहनो पाछो फरि अंत नथी. जे फलाणे दिन सिद्ध पाछा संसार में आवसे (अर्थात् नही आवे ) तेहने सादि अनन्त भांगो कहिये. अने वली सिद्ध केहवा छे ? के, अविनाशी एटळे अविनाशी कहतां ए सिद्धि पद निपनो छे, पिण फिरि पाछो विनाश पणो नथी. अने वली सिद्ध केहवा छे ? के अप्रयासी परिणाम. एटले अप्रयासी कहतां सिद्ध प्रयास विना अनंतो आत्मिक सुख प्रते भोगवे छे, अने परिणाम कहतां सिद्ध परमात्मा सदा काल निरंतर पणे पोताना परिणामिक भावनें विषे रह्या वर्ते छे. उपादान गुण तेहिज
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