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अध्यात्मगीता.
बलनो धणी कर्म शत्रुनो जीतणहारो. अने एम स्वभाविक थयो कहतां ए पर स्वभाव रूप विभाव दशाने विषे प्रणम्यो हतो, तिहां थकी मति निवारीने स्वभाविक कहतां पोताना स्वभावने विषे प्रणम्यो. अने एहवी रीते पोताना स्वभावने विष प्रणम्यो त्यारे. भोगवे आत्म संपद सुधीर. एटले आत्म संपद कहतां ज्ञानादि अनंत चतुष्टय रूप पोतानी आत्म संपदा प्रतें भोगवे कहतां विलसे. अने सु कहतां भली तरह अने धीर कहतां अधीर पणो मुकीने निर्भय थको भोगवे. अने जेह उदयागता प्रकृति वलगी. एटले जे उदयागता कहतां उदय भावने जोगे, प्रकृति वलगी कहतां जे आत्म
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