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गुणस्थानक विचार.
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परिणामथी कषाय खपावीने आतमा शीतल परिणामे परणम्यो करम निर्जरा करे ते ए गुणठाणं जयन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहूर्तनी स्थिति छे, ए गुणठाणे चारित्र सामायिक तथा छेदोपस्थापनीय ए वे छे ८ नवमो गुणठाणो अनिवृत्तिवादर छे ते शुक्ल ध्याननो पहेलो पायो तेथी आवे, ए गुणठाणे वर्तता जीव एक अध्यवसाये जेटला होवे तेटला सर्वनो एक सरखो परिणाम एक सरखो संवर, एकसरखी निर्जरा, एहने सामायिक तथा छेदोपस्थापनीय ए वे चारित्र होवे, एहने अंते तीन वेद जाये तथा तीन कषाय संजलनो क्रोधमान माया लोभ जाये ए गुणठाणे संख्याता जीव होये. ए गुणगणानी
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