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अध्यात्मगीता.
रूप जीवनो उपयोग वो त्यारे; आत्मता. दात्मता कहतां आत्मानो तद्रूप स्वरूप जेहवो सत्ताये रह्यो छे तेहवो, अने ता पूर्ण भावे. एटले ता कहतां तिमज अने पूर्णभावे कहतां शुद्ध निश्चय नय सम्पूर्ण भावे करीने सहित. नदा निर्मलानंद सम्पूर्ण पावे. एटले तदा कहतां तिवारे अने निर्मल कहतां कर्म रूप मलथकी रहित अने नंद कहतां आनंद मयी, अने सम्पूर्ण पावे कहतां सिद्धि रूप कार्य प्रते सम्पूर्ण भावे करीने नीपजे अने एहवी रीते सिद्धि रूप कार्य सम्पूर्ण भावे करीने नीपजे त्यारे ? ॥ २३ ॥
चाल:चेतन अस्ति स्वभाव में जेह न
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