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गुणस्थानक विचार. २५३ गुणठाणो पलटे ते गये व्यो नथी ते माटे अंतर्मु. हर्ननी स्थिति कही. छठे, सातमे बे गुणठाणे सामायिक तथा दोपस्थापनीय तथा परिहार विशुद्धि चारित्र छे, तथा सातमे गुणठाणे साधु लब्धि फोरवे नहीं अने छठा गुणठाणाना साधु जिनशासनने काजे लब्धि फोरवे तेनुं साधुपणुं जाय नहीं ७ आठमो अपूर्वकरण गुणठाणो जे जीव भावनाभावतो आत्मानो स्वरूप अनंतज्ञानमयी, अनंतदर्शनमयी, अनंतचारित्रमयी, अनंतदानमयी, अनालाममयी, अनंतभोगमयी, अनंतउपभोगमयी, अनंतवीर्यमयी, अनंतअव्यावाधसुखमयी, परमआनंदमयी, अरूपी, अवेदी, अकपाई, अलेसी, अशरीरी, अनाहारी,
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