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अध्यात्मगीता.
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पर रक्त | संगांगी परिणामे वर्ते
मोहाशक्त ॥ पुद्गल भोगे इयो धारे पुद्गल खंध | पर कर्ता परिणामे बांधे कर्म नो बंध ॥ १२ ॥
अर्थः- हिवै जीवनो स्वरूप निगोदथकी मांडीनें देखावे छे. एटले काल अनादि अतीत अनंतै जे पररक्त एटले अतीत कहतां अनादि काल नूंं जीवनें पर पुद्गलादि विभाव दशानें विषे रक्त परिणाम वर्ते छे. तेस्येणै करीनें ? तो कै संगांगी परिणाम वर्ते मोहाशक्त. एटले संगांगी कहतां जीवै करचो संग, त्यारै मोह दीधो अंग एटले संगांगी परिणाम थया तेणै करीने स्यो विगाड़ थयो
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