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अध्यात्मगीता.
पाप आश्रवना दलीया बांधे तेहने अजीब कहिये ते निश्चय नये करी छांड़वा योग्य अने व्यवहार नये करी छोड़वा योग्य.
हिवे संवरनो स्वरूप कहे छे. एटले व्यवहार नये करी संवरनो स्थरूप कहतां निवृत्ति प्रवृत्ति रूप चारित्र जाणवो. अने निश्चय नये करी संवर कहतां जे पोताना स्वरूपमें रमण करबो.
बार
हिवे निर्जरानो स्वरूप कहे छे. एटले व्यवहार नये करी निर्जराना भेद जाणवा. अने निश्चय नये निर्जरानो स्वरूप कहतां सर्व प्रकारे इच्छानो रोध कर पोताना स्वरूप मे समता भाव वर्त्तवो.
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