________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
१५७
जीव सिद्धस्वरूप एकज छे एवो एकत्व स्त्ररूप तन्मयपणे अनंता आत्म धर्मनो एकत्वपणे ध्यानवितर्क केहतां श्रुतज्ञानावलंवीपणे अने अप्रविचार केहतां विकल्प रहित दर्शन ज्ञाननो समयांतरें कारणता विना रत्नत्रयीनो एक समयी कारण कार्यतापणे जे ध्यान वीर्य उपयोगनी एकाग्रता ते एकत्ववितर्क अप्रविचार जाणवो. ए पायो बारमा गुणठाणे ध्यावे. ए बेहु पायामां श्रुतज्ञानावलंबनीपणो छे. पण अवधि मनःर्पयत्र ज्ञानोपयोगें वर्तता जीव कोइ ध्यान करी सके नहीं, ए बे ज्ञान परानुयायी छे. माटे ए ध्यानथी घनघातियां चार कर्म खपावे. निर्मल केवल ज्ञान पामे पछे तेरमें गुणठाणे ध्यानंतरीकापणे वर्त्ते छे. तेर
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only