________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आगमसार.
तथा टीका प्रमुखनुं शुं काम छे ते पण मृषावाद छे केमके श्रीप्रश्नव्याकरणमां "वयणतियं लिंगतियं " इत्यादिक जाण्या विना अने नय निक्षेप जाण्या विना जे उपदेश आपे ते मृषावादी छे एग अनेक मूत्रमा कयुं छे माटे बहुश्रुत पासे उपदेश सांभलवो. श्री उत्तराध्ययन मध्ये बहुश्रुतने मेरुनी तथा समुद्रनी अने कल्पवृक्षादि सोल उपमा दीधी छे ए द्रव्य निक्षेपो कह्यो.
४ भाव निक्षेपो कहे छे. जे नाम स्थापना अने द्रव्य ए त्रण निक्षेपा ते एक भाव पढमो, बीओनिज्जुत्ति मिसओ भणिओ॥ तइओय निरविसेसो, एस विहि होइ अणुओगो" एवो पाठ छे ते. खरो जणाय छे पछे बहुश्रुत कहे ते खरुं.
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only