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अध्यात्मगीता.
नहिं पार ॥ समरयां संकट दूरे टले । सेव्यांथी शिव सम्पद् मिले ॥ १॥ जिन उत्तम पद पंकज रूप । तेहने सेवे सुर नर भूप ॥ अमी कुंअर कहे निज रूप । ए अध्यात्म गीतानो स्वरूप ॥ २॥ अल्पबुद्धि में रचना करी । शुद्ध करो पंडित जन मिली। भणे गुणे वलि जे सांभल । तिस घर लक्ष्मी लीला करे ॥ ३ ॥
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समाप्त.
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