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पंडित श्रीदेवचन्द्र गणि विरचित || अध्यात्मगीता ||
श्री संवेगी सिरदार शिरोमणि जिन उत्तम पदपंकज रूप, शिष्य अमीकुंवर कृत बालाबोध सहिता ||
|| ढालभंवरगाथानी ॥ प्रणमिये विश्वहित जिनवाणी । महानंद तरु सींचवाऽमृत पाणी ॥ महा मोहपुर भेदवा वज्रपाणी गहन भवफंद छेदन कृपाणी ॥ १
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