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गुणस्थानकविचार.
पछी मूक्ष्म वचनजोग राके पछी मूक्ष्म कायाजोग रोके शरीररहित थाए जेटलो देहमान होवे जघन्य बे हाथनी उत्कृष्टो पांचसे धनुपनो त्रीजे भागे घटाडे, तेबारे जघन्य वत्रीस आंगुलनी उत्कृष्ट तीनसतेत्रीस धनुष बत्रास आंगुलनी अवगाहना रहे, तेवारे आत्मा अयोगी अक्रिय, अलेसी, अनाहारी, अशरीरी, शुक्ल ध्याननो चोथो पायो थईने अघाती करम च्यार, वेदनाकर्म १ आउखा.. कर्म २ नामकर्म ३ गोत्रकर्म ४ नो क्षय करीने मोक्ष जाय ॥ इतिश्री चउदमु गुणस्थानक संपूर्णम् ॥
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