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अध्यात्मगीता.
ने, जुत्तो कहतां क्त प्रते वर्त्ते छे. त्यारे शिष्य कहे. चार निक्षेपे करीने सिद्ध नो स्वरूप केम जाणिये ? त्यारे गुरु तदवित् ( तद् व्यतिरिक्त ) शरीर आश्रये चार निक्षेपा कहे छे. एटले नाम सिद्ध कहतां सिद्ध ऐसो नाम त्रणे काल एक रूप शाश्वतो वर्त्ते छे ॥ १ ॥
अने थापना सिद्ध कहत देहमान मध्येथी बीजो भाग घटाड़ीने वे भागना शरीर प्रमाणे आत्म प्रदेशनो घन करी थापना रूप क्षेत्र अवगाही रह्या छे. ॥ २ ॥
अने द्रव्य सिद्ध कहतां शुद्ध निर्मल असंख्यात प्रदेशने विषे ज्ञानादि अनन्त गुण रूप छती पर्य्याय वस्तु रूप मगटयो छे.
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