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आगमसार
१७५ सरहे ५ उपबृंहगुण जे ए आपणा जीवमां अनंत ज्ञानादिक गुण छे ते छुपाववा नही, शुद्ध सत्ता जेवी छे तेवी कहेवी, राग द्वेष अज्ञान ते कर्मनी उपाधि छे. जीव ए उपाधिथी न्यारो छे. ६ स्थिरीकरण गुण ते आपणा परिणाम ज्ञानध्यानमां स्थिर करवा, डगाववा नही अथवा कोइ भव्य प्राणी धर्मथी पडतो होय तेने • साह्य देइ उपदेश आपी स्थिर करवो. ७ वात्सल्यता गुण ते जेनी साथे ज्ञान ध्यान तप पडिकमणो भेलो करता होइये अने सद्दहणा पण एकज होय ते आपणो साधर्मि भाइ छे तेनी भक्ति करवी. अथवा सर्व जीवना ज्ञानादि गुण आपणा समान छे माटे सर्व जीव ऊपर दया करवी.
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