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अध्यात्मगीता.
कालचक्र वही गया fपण हजी जीव कांठा प्रतें न पाम्यो, एहवो अपगवार जे समुद्र तेहने विषेथी तारवाने ए सुनि केहवा छे ? निर्भय जहाज एटले निर्भय जहाज कहतां एहवा मुनीनी सेवा भक्ति रूप आसना वासना जे जीव करे छे, ते जीव संसार समुद्र मे भ्रमता, निर्भय कहतां भव भ्रमण रूप भय टालवाने निर्भय जहाज प्रते पाम्यो एटले जहाज होय तो पाते तरे अने जहाजने आश्रय तेहने पण तारे. मांटे एहवा जहाजरूप मुनिराज संसार रूप समुद्र पोते तरे, अने भव्य प्राणीने पिण तारे. अने वली ए मुनि केहवा छे ? || ४६ ॥
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