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अध्यात्मगीता. मार्थ जाणवो. नयनिक्षेप प्रमाणे जाणे वस्तु समस्त. एटले वली जिनवाणी के हवी छे ? के नय कहतां नैगमादि सात नये करी, अने निक्षेप कहेतां नामादि च्यार निक्षेपे करी अने प्रमाणे कहेता प्रत्यक्ष परोक्ष बे प्रमाणे करी, जिनवाणी केहवी छ ? के समस्त वस्तु पदार्थनां जाणपणाना करणवाली छे. त्रिकरण योगे प्रणमुं, जैनागम सुप्रशस्त एटले अन्यमतिना शास्त्र के ते तो अप्रशस्त छे, अने जिनमतिना आगम छे ते प्रशस्त छे, एवो जैनागम, तेहने त्रिकरण जोगे कहेतां मने करी, वचने करी, कायाये करी प्रणमूं कहेतां नमस्कार प्रति करूं छु ॥ २॥ इति श्री जिनवाणीने नमस्कार जागवा ॥
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