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गुणस्थानकविचार. २१७ ५ थूलपरिग्रह विरमण जे धनादिक नव भेदनो परिग्रहनो पञ्चक्खाण करे, ईच्छा परिमाण करे अथवा पोता पासे जे धन होइं ते राखी बीजानो पञ्चक्खाण करे ६ दिक् परिमाणवत जे च्यार दिशा तथा ऊंचो तथा नीचो दिसी जावानो मान करे ७ भोगोपभोग परिमाण व्रत जे नीम साचवे, पन्नर कर्मादान न करे, जे पोताने खावेपीवे तथा वस्त्रोन मान राखे ८ अनर्थ दंड विरमणव्रत, ते जे मोटका पाप, रंगवां, खेतर खेडवां, भाठो जे चूना प्रमुख न करवानां पञ्चक्खाण करे ९ सामायिकवत जे जघन्य २ घडी सुद्धी संसारनां काम मूकी कुटुंब धननो राग तजी कोइथी द्वेष न करवो एहवो समपरिमाण राखवो ते
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