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अध्यात्मगीता.
हिंसा लागे. अने आत्म धर्मनो रक्षक भाव अहिंसक कहाय. एटले आत्म धर्मनो रक्षक कहतां शुभाशुभ विभाव दशा रूप पर पुद्गलनी वेच्छा थकी रहित, अने एक पोतानी आत्म सत्ताये ज्ञानादि अनंत गुण रूप धर्म रह्यो छ, तेहनी रक्षा प्रते करे छे, ते जीवने भाव अहिंसक कहतां भाव दया कहिये. अने एहवी रीते भाव दया रूप प्रणाम वा त्यारे?॥१६।।
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आत्म गुण रक्षणा तेह धर्म। स्वगुण विध्वंसणा ते अधर्म ॥ भाव अध्यात्म अनुगत प्रवृत्ति । तेहथी होय संसार छित्ति ॥ १७॥
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