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अध्यात्मगीता.
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वत् तिहां साधुपंथ जाणवा. तेणे गीतार्थ चरण रहीज. एटले तेण कहतां ते कारण माटे गीतार्थ मुनि के चरणे रहिजे. अन एहवा गीतार्थ मुनिना चरण कमण सेवा थकी श्यूं नीपजे ? नो के. शुद्ध सिद्धांत रस तो लहिजे एटले शुद्ध कहतां निर्मल यथार्थ निःसंदेह पण सिद्धान्त कहतां एहवा आगम संबंधी या ज्ञान रस प्रते चारखीजे. अने वली ए मुनि केहवा छे ? ।। ४७ ॥ श्रुत अभ्यासी चोमासी वासी लीबड़ी ठाम । शासनरागो सौभागी श्रावकना बहु धाम ॥ खरतर गच्छ पाठक श्री दीपचंद सुप
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