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आगमसार.
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सर्व टल्या पण पांचे इन्द्रीय तथा मन अने लेश्या ए पुद्गल छे ते जीवमां गणाणा, कारके विषयादिकतो इंद्रियो ले छे ते जीवथी न्यारा छे पण इहां व्यवहारनयमते जीव भेला लीधा छे वारे ऋजुसूत्रनय वोल्यों जे उपयो गवंत ते जीव इहां इंद्रियादिक सर्व टल्या पण अज्ञान तथा ज्ञानना भेद टल्या नहीं. हवे शब्दनय वोल्यो जे नामजीव, स्थापना जीव द्रव्यजीव भाव जीव इहां जीवमां गुण निर्गुणगो भेद पड्यो नही, तेवारें समभिरूढनय बोल्यो जे ज्ञानादिगुणवंत ते जीव तेवारें मतिज्ञान श्रुतज्ञान इत्यादिक साधक अवस्थाना गुण ते सर्व जीव स्वरूपमा आव्या हवे एवंभूतनयबोल्यो जे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन,
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