________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
अहो भव्य ! अहो उत्तम ! तेहना ध्यानने विषे सदाकाल रम्यो कहता रमण प्रतें कयों अने एहवी रीते रमण करतां थकां सदा सुखपीन, एटले सदा सुखपीन कहतां ते जीवने सदाकाल पीन कहतां पुष्ट सुख प्रते जाणवो. त्यारे शिष्य कहे एहवी रीते पुष्ट मुखनी प्राप्ति केम नीपजे ? ॥ ४४ ॥
ढाल:अहो भव्य तुम्हें ओलखो जैन धर्म । जिणे पामिये शुद्ध अध्यात्म मर्म ॥ अल्प कालै टलै दुष्ट कर्म । पामिये सोय आनन्द शर्म ॥४५॥
अर्थ:-अहो भव्य तुम्हे ओलखो
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only