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२३६ गुणस्थानकविचार. साखे गुरु सारखे आत्म साखे मिछामिदुक्कडं १७ हवे अहारमो पापस्थान मिथ्यात्व जे कुदेव विषयी कर्माधीन परिग्रही पुण्यप्रकृति भोगि तेहने देव माने, कुगुरु चारित्रधर्म रहित जे अन्य लिंगी तथा स्वलिंगी गुणभ्रष्ट परिग्रहनो लोभी अढार पापरथान भरया ते गुरु करी माने, धमे यथार्थ आत्मपरिणति विना अथवा तेहना साधन बिना धर्म माने तथा जीवादिक नव तत्त्व जिम वस्तुधर्म वस्तुपणे पोतानी परिणति छे, पटद्रव्ये जिम पोतानो परिणति गुणपर्याय स्वभाव स्याद्वाद रीते जिम छ तिम न सद्दहे कल्पित रीते सहहे तेने मिथ्यात्व कहे थे, तेहना मूल भेद ५ अभिग्रहमिथ्यात्त्र-खोटोकदाग्रह झाल्यो मूके
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