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स्थानके आत्मिक सुख अनुभवे छे ते सुख ने तोले एक समय मात्र पिण न आवे. अने स्वादवता कहतां ए विभाविक सुखने अभावे स्वभाविक सुखनो आस्वादन पर्ने करे छे. अने वली सिद्ध परमात्मा केहवा छे ? ||३९||
अध्यात्मगीता.
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चाल:
कर्त्ता कारण कार्य निज परिणामिक भाव । ज्ञाता ज्ञायक भोग्य भोक्ता शुद्ध स्वभाव ॥ ग्राहक, रक्षक, व्यापक, तन्मयताये लीन, पूरण आतम धर्म प्रकाश रसै लयलीन
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