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अध्यात्मगीता.
अछेदी. एटले अछेदी कहतां हुं कोईनो छेदयो छेदाऊं नहीं ४५.
अखेदी. एटले अखेदी कहतां हुं स्वरूप रमण मे खेद पाएं नहीं ४५.
असखाई. एटले असखाई कहतां म्हारे कोइ सखाई भूत ( साक्षीभूत ) नथी. हुं म्हारे पराक्रमे करी सहित हुं पिण म्हारा अबला ( उलटा ) परिणमन थकी बंधाणी लुं ४७. अने हुं सवलो ( सुलटो ) प्रणमीस त्यारे छुटी. पण मने कोई बांधवा छोटवा सामर्थवान् नथी ४८.
अलेशी. एटले अलेशी कहता हुंछ ६ लेश्याथी रहित न्यारो अने लेश्यारूप ते
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