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अध्यात्मगीता.
जाणपणा रूप भासन रमण थयो छे. अने धरै साध्य रूपै सदा तत्व प्रीति. एटले धेरै साध्य रूपै कहेता पोतानो आत्मतत्त्व निरावरण करवा जोवे जो त्यां जेहनी प्रीति प्रतें लागी छे, अने एहवी रीते प्रीति प्रतें लागी त्यारे ॥ ९॥
चाल:
समभिरूढ नये निरावर्णी ज्ञाना. दिक गुण मुख्य । क्षायिक अनंत चतुष्टय भोगी मुग्ध अलक्ष ॥ एवं भूते निर्मल सकल स्वधर्म प्रकाश। पूर्ण पर्याय प्रगटे पूर्णशक्ति वि. लास ॥१०॥
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