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अध्यात्मगीता.
एटले अल्प कहतां थोड़ा कालमे, अने दुष्ट कहतां आकरा आत्मगुणने घातना करणहार एहवा ज्ञानावर्णादि जे कर्म टले कहतां नाश प्रते पामे. अने एहवी रीते कर्मनो नाश प्रते थाय त्यारे पामिये सोय आनन्द शर्म. एटले स्व कहतां पोतानो आत्मिक सुखनो आनंद कहतां एहयो आनंद नित्यानंद परम सुख प्रतें, अने शर्म कहतां जेहनो स्व स्थान प्रतें जिहां अनंता सिद्ध परमात्मा वसे छे, एहयो स्वस्थान कहतां घर प्रते पामे. त्यारे शिष्य कहे-जिहां अनंता सिद्ध परमात्मा वसे छे ते घर प्रतें केम पामिये ? ॥ ४५ ॥
चाल:नय निक्षेप प्रमाणे जाणे जीवा.
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