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पडिक्कमिउं = प्रतिक्रमण
इच्छामि = चाहता हूँ मे = मैंने
जो = जो
देवसि = दिवससम्बन्धी
इयारो = श्रतिचार
श्रमण-सूत्र
नवरहं वंभचेरगुत्तीणं, दसव समधमे समणाणं जोगाणं, जं खंडियं जं विराहियं
तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
शब्दार्थ
करना
को = किया हो
[ कैसा प्रतिचार ? ] काइनो = काय-सम्बन्धी वाइयो = वचन - सम्बन्धी माणसिश्रो = मन- सम्बन्धी [तीनों का विशदीकरण ]
उस्सुत्तो = सूत्र- विरुद्ध उम्मग्गो = मार्ग-विरुद्ध
कप्पो = श्राचारविरुद्ध करणिज्जो = न करने योग्य
दुज्झात्रो = दुर्ध्यानरूप दुब्विचिति = दुश्चिन्तर्नरूप
अरणायारो = आचरने योग्यं
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अणिच्छियन्वी = न चाहने योग्य
समणपाउरंगो= साधू का अनुचित
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[ ये प्रतिचार किंविषयक होते हैं ? ]
नाणे = ज्ञान में
तह = तथा.
द'सणे = दर्शन में, चरिते = चारित्र में
[ तीनों के भेद ]
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सुए = श्रुत ज्ञान में
सामाइए = सामायिक चारित्र में
उपसंहार ]
तिरहं = तीन
गुत्तीण = गुतियों की
चउरह चार
कसायाण = कषायों के निषेधोंकी
पंचरहं = पाँच
महल्वाण - महावतों की
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छरहं = छह
tail कायारण जीवनिकायों की सत्तरहं = सात
विसरणारा = पिण्डेषणाओं की अठरह = श्राठ
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