Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
सामान्यस्य प्रतिभासनं स्पष्टं विशेषस्य प्रतिभासवत्, यादृशं तु दूरे तस्यास्पष्टं प्रतिभासनं तादृशं न निकटे स्वसामग्रयभावात् तद्वदेव ।
न चानुगतप्रतिभासो बहिःसाधारणनिमित्तनिरपेक्षो घटते; प्रतिनियतदेशकालाकारतया तस्य प्रतिभासाभावप्रसङ्गात् । न चाऽसाधारणा व्यक्तय एव तन्निमित्तम् ; तासां भेदरूपतयाऽऽविष्टत्वात् । तथापि तन्निमित्तत्वे कर्कादिव्यक्तीनामपि गौगौरिति बुद्धिनिमित्तत्वानुषङ्गः।
न चाऽतत्कार्यकारणव्यावृत्तिः एकप्रत्यवमर्शायेकार्थसाधनहेतु : अत्यन्तभेदेपीन्द्रियादिवत् समुदितेतरगुडच्यादिवच्चेत्यभिधातव्यम् ; सर्वथा समानपरिणामानाधारे वस्तुन्यतत्कार्यकारण
का प्रतिभास निकट में स्पष्ट रूप से होता है उसी प्रकार सामान्य प्रतिभास भी निकट में स्पष्ट रूप से होता ही है, दूर में स्थित होने पर जैसा सामान्य का प्रतिभास अस्पष्ट होता है वैसा निकट में स्थित होने पर नहीं होता है, क्योंकि वहां स्वसामग्री का अभाव है जैसे कि विशेष दूर में स्थित होने पर अस्पष्ट रूप से प्रतीत होता है और निकट में स्थित होने पर स्पष्ट रूपेन प्रतीत होता है।
पदार्थों में जो अनुगताकार प्रतिभास होता है वह बाह्य साधारण निमित्त की अपेक्षा बिना नहीं हो सकता है, यदि सामान्य रूप बाह्य निमित्त के बिना ही अनुवृत्त प्रतिभास होता तो प्रतिनियत देश (स्थान गोशालादि) प्रतिनियत काल [उसी विवक्षित समय में] और प्रतिनियत आकार [सास्नादि मान] रूप से उस सामान्य की ( गोत्व आदि ) प्रतीति नहीं पा सकती थीं। इस अनुगताकार प्रतिभास का निमित्त असाधारण व्यक्तियां ( खंडी आदि गायें ) ही है ऐसा कहना तो अशक्य है, व्यक्तियां अर्थात् शबली आदि गो विशेष अथवा अन्य अन्य वस्तु विशेष भेद रूप से आविष्ट हैं वे व्यक्तियां सामान्य या सदृशतारूप अनुगताकार का प्रतिभास कराने में निमित्त नहीं हो सकती हैं, यदि भिन्न भिन्न व्यक्तियां ही अनुगताकार की प्रतीति में निमित्त हैं तो सफेद अश्व आदि व्यक्तियां भी "यह गो है, यह गो है" इस प्रकार के अनुगत प्रतिभास का निमित्त बन जायेंगी ? क्योंकि जैसे शबली धवली आदि गो व्यक्तियां असाधारण होकर भी सामान्याकार का प्रतिबोध कराती हैं वैसे सफेद आदि अश्व व्यक्तियां भी करा सकती हैं, उभयत्र व्यक्तिपना तो है ही ?
बौद्ध-सफेद अश्वादि व्यक्तियों द्वारा गो आदि व्यक्तियों में अनुगत प्राकार की प्रतीति इसलिये नहीं होती है कि अश्वादि व्यक्तियों की गो आदि व्यक्तियों के साथ
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