Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन सत्ताया अभिन्नत्वात् द्रव्यस्यैव द्रष्टव्यमिति सूत्रार्थः ।।९।। एवं द्वितीयस्थले सत्ताद्रव्ययोरभेदस्य द्रव्यशब्द, व्युत्पतिश्चेति यापनहरोष गाथा गता।
हिन्दी तात्पर्यवृत्ति गाथा-९ अन्ययसहित सामान्यार्थ-(जं) जो ( ताई ताई) अपने-अपने ( स्वभावपज्जयाई) स्वभावरूप पर्यायोंको ( दवियदि) द्रवण करै ( गच्छदि) प्राप्त करै (तं) उसको ( दवियं) द्रव्य ( भपणते) कहते हैं (तु) परन्तु वह द्रव्य ( सत्तादो) सत्तासे ( अणण्णभूदं) अभिन्न
विशेषार्थ-जो अपनी ही अवस्थाओंमें भूतकालमें परिणमन कर चुका है, वर्तमानकाल में परिणमन करता है तथा भविष्यमें परिणमन करेगा उसको द्रव्य कहते हैं। स्वभाव पर्यायों की अपेक्षा द्रवति और विभाव पर्यायों की अपेक्षा गच्छति कहा गया है। यह द्रव्य अपनी सत्तासे निश्चयनयसे एकरूप है, क्योंकि संज्ञा, संख्या, लक्षण प्रयोजनादिकी अपेक्षासे सत्ता और द्रव्यका भेद होनेपर भी निश्चयनयसे सत्ता और द्रव्यका अभेद है इसीलिये इससे पहली गाथामें जो सत्ताका लक्षण कहा गया है वह सब लक्षण सत्तासे अभिन्न द्रव्यका भी जानना चाहिये । अर्थात् द्रव्यमें सर्वपदार्थ स्थितपना है, एक पदार्थ स्थितपना है, सर्वरूपपना है, एकरूपपना है, अनंत पर्यायपना है, एक पर्यायपना है, तीन लक्षणपना है, एक लक्षणपना है, एकरूपपना है, अनेकरूपपना है ।।९।।
इस तरह दूसरे स्थलमें सत्ता और द्रव्यका अभेद व द्रव्यशब्दकी व्युत्पत्ति कथन करते हुए गाथा पूर्ण हुई।
समयव्याख्या गाथा-१
अत्र त्रेथा द्रव्यलक्षणमुक्तम् । दव्वं सल्लक्खणयं उप्पादब्वय-धुवत्त-संजुत्तं । गुण-पज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ।।१०।।
द्रव्यं सल्लक्षणकं उत्पादव्ययध्रुवत्वसंयुक्तम् ।
गुणपर्यायाश्रयं वा यत्तद् भणन्ति सर्वज्ञाः ।।१०।। सद्व्यलक्षणम् । उक्तलक्षणायाः सत्ताया अविशेषाद् द्रव्यस्य सत्स्यरूपमेव लक्षणम् । र चानेकान्तात्मकस्य द्रव्यस्य सन्मात्रमेव स्वरूपं यतो लक्ष्यलक्षणविभागाभाव इति । उत्पादव्ययध्रौव्याणि वा द्रव्यलक्षणम् । एकजात्यविरोधिनि क्रमभुवां भावानां संताने पूर्वभावविनाशः