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षड्द्रव्य- पंचास्तिकायवर्णन
आनंदमय एक स्वभावरूप आत्मतत्त्वकी भावनासे रहित जीवने जो मूर्तिक कर्म बांधे है उन hist संगतिसे व्यवहारनयसे यह मूर्तिक भी कहलाता है। संशय आदिसे रहित होकर आप और परको जाननेको समर्थ जो अनन्त चैतन्यकी परिणति उसको रखनेसे यह जीव वास्तवमें खेतनवाला चेतन है तथा अन्य पांच द्रव्योंमें स्वपर प्रकाशक चैतन्यगुण नहीं है इससे वे पांचों अचेतन हैं - यह तात्पर्य है ।। ९७ ।।
इस तरह चेतन अचेतन मूर्त अमूर्तको प्रतिपादन करनेकी मुख्यतासे गाथासूत्र समाप्त हुआ ।
अत्र सक्रियनिष्क्रियत्वमुक्तम् ।
जीवा पुग्गल - काया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा ।
पुग्गल करणा जीवा खंधा खलु काल करणा दु । । ९८ । । जीवाः पुलकाया: सह सक्रिया भवन्ति न च शेषाः ।
पुलकरणा जीवाः स्कंधाः खलु कालकरणास्तु ।। ९८ ।।
प्रदेशांतरप्राप्तिहेतुः परिस्पंदनरूपपर्याय: क्रिया । तत्र सक्रिया बहिरंगसाधनेन सहभूताः जीवाः, सक्रिया बहिरंगसाधनेन सहभूताः पुल्लाः । निष्क्रियमाकाशं, निष्क्रियो धर्मः, निष्क्रियोऽधर्मः, निष्क्रियः कालः । जीवानां सक्रियत्वस्य बहिरंगसाधनं कर्मनो कर्मोपचयरूपाः पुतला इति ते मुगलकरणाः । तदभावान्निः ष्क्रियत्वं सिद्धानाम् । पुहलानां सक्रियत्वस्य बहिरंगसाधनं परिणामनिर्वर्तकः काल इति ते कालकरणाः । न च कर्मादीनामिव कालस्याभावः । ततो न सिद्धानामिव निष्क्रियत्वं पुङ्गलानामिति । । ९८ । ।
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अन्वयार्थ --- ( सह जीवाः पुद्गलकायाः ) बाह्यकरण सहित स्थित जीव और पुद्गल (सक्रियाः भवन्ति ) सक्रिय हैं, ( न च शेषाः) शेष द्रव्य सक्रिय नहीं हैं, ( जीवाः ) जीव (पुद्गलकरणा: ) पुद्रलकरणवाले ( जिन्हें सक्रियपनेमें पुद्गल बहिरंग साधन हो ऐसे ) हैं ( स्कन्धाः खलु कालकरणा: तु ) और स्कन्ध अर्थात् पुद्गल तो कालकरणवाले ( जिन्हें सक्रियपनेमें काल बहिरंग साधन हो ऐसे ) हैं ।
टीका- यहाँ ( द्रव्योंका ) सक्रिय - निष्क्रियपना कहा गया है।
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प्रदेशान्तरप्राप्तिका हेतु ऐसी जो परिस्पन्दरूप पर्याय, वह क्रिया है । वहाँ बहिरंग साधनके साथ रहनेवाले जीव सक्रिय हैं, (बहिरंग साधनके साथ रहनेवाले पुद्गल सक्रिय हैं ) आकाश निष्क्रिय है, धर्म निष्क्रिय है, अधर्म निष्क्रिय है, काल निष्क्रिय है।
aarat सक्रियपनेका बहिरंग साधन कर्म नोकर्मके संचयरूप हैं, इसलिये जीव पुद्गलकरणबाले