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नवपदार्थ - मोक्षमार्ग वर्णन
पदार्थोंका कथन है, सो ही दिखाते हैं । दुःख त्यागने योग्य तत्त्व है, दुःख का कारण संसार है, संसारके कारण आस्त्रव और बंध पदार्थ हैं। इन आस्त्रव और बन्धका कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र ये तीन हैं। सुख ग्रहण करने योग्य तत्त्व है, उसका कारण मोक्ष है। मोक्षके कारण संवर और निर्जरा दो पदार्थ हैं । इन दोनोंके कारण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र हैं । इस तरह पूर्वमें कहे हुए जीव और अजीव दो पदार्थोंको लेकर आगे कहने योग्य पुण्य पाप आदि सात पदार्थोंके साथ दोनों मिलकर समुदायके नौ पदार्थ हो जाते हैं। इस तरह नव पदार्थोंकी स्थापना प्रकरण समाप्त हुआ ।
हिन्दी ता० - उत्थानिका- इसके आगे जो किसी अपेक्षासे जीव और पुहलको परिणमन शक्तिधारी कहकर उनका संयोग भाव सिद्ध किया गया है यही संयोग आगे कहने योग्य पुण्य पाप आदि सात पदार्थोंका कारण या बीज है ऐसा जानना चाहिये। इनको तीन गाथाओंमें बताते हैं
अन्वय सहित सामान्यार्थ - ( खलु ) वास्तवमं (जो ) जो काई ( संसारत्था ) संसारमें भ्रमण करनेवाला (जीवो ) अशुद्ध आत्मा है ( तत्तो) उससे (दु ) ही ( परिणामो ) अशुद्ध भाव ( होदि ) होता है ( परिणामादो ) अशुद्ध भावसे ( कम्मं ) कर्मोंका बंध होता है ( कम्मादो ) उन कर्मोक उदयसे ( गदिसु गदी ) चारगतियोंमेंसे कोई गति ( होदि ) होती है । (गदिम् ) गतिको ( अधिगदस्स) प्राप्त होनेवाले जीवके ( देहो ) स्थूल शरीर होता है ( देहादो ) देहके सम्बन्धसे ( इंदियाणि ) इंद्रियाँ (जायंते ) पैदा होती हैं । ( तेहिं दु ) उनही इंद्रियोंसे ही ( विषयग्गहणं ) उनके योग्य स्पर्शनादि विषयोंका ग्रहण होता है ( तत्तो ) उस विषयके ग्रहणसे ( रागो च दोसो वा ) राग या द्वेषभाव होता है । ( एवं ) इस ही प्रकार ( संसारचक्कवालम्मि ) इस संसारूपी चक्रके भ्रमणमें ( जीवस्स) जीवकी ( भावो ) अवस्था ( जायदे) होती रहती है ( इदि ) ऐसा ( जिणवरेहिं ) जिनेन्द्रदेवोंने ( भणिदो) कहा है । यह अवस्था ( अणादिणिघणो ) अभव्योंकी अपेक्षा अनादिसे अनंतकाल तक रहती है ( सणिघणो वा ) तथा भव्योंकी अपेक्षा यह अनादि होकर भी अन्त सहित है।
विशेषार्थ - यद्यपि यह जीव शुद्ध निश्चयनयसे विशुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभावका धारी है तथापि व्यवहारनयसे अनादिकालसे कर्म बन्धमें होनेके कारण यह जीव अपने ही अनुभवगोचर अशुद्ध भाव करता है । इस अशुद्ध भावसे कर्मोंसे रहित व अनन्तज्ञानादि गुणमयी आत्माके स्वभावको ढकने वाले पुद्गलमयी ज्ञानावरण आदि कर्मोंको बाँधता है । इन कर्मोंके उदयसे आत्माकी प्राप्ति रूप पंचमगति-मोक्षके सुखसे विलक्षण देव, मनुष्य,