Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 367
________________ पंचास्तिकाय प्राभृत हिन्दी ता०-उत्थानिका-आगे वेदनीय आदि शेष अघातिया कर्म चारके विनाशरूप जो सर्व द्रव्योंकी निर्जरा उसका कारण जो ध्यान है उसका स्वरूप कहते हैं अन्वय सहित सामान्यार्थ-( सभावसहिदस्स) शुद्ध स्वभावके धारी ( साधुस्स ) साधुके (णिज्जरहेदू) निर्जराका कारण ( 'झाणं) जो ध्यान ( जायदि ) पैदा होता है वह (दसणणाणसमग्गं) दर्शन और ज्ञानसे परिपूर्ण भरा है तथा ( अण्णदव्वसंजुत्तं णो) वह अन्य द्रव्यसे मिला हुआ नहीं है। विशेषार्थ-पूर्व गाथामें जिस भावमोक्षरूप केवलीभगवानका वर्णन किया गया है वे निर्विकार परमानंदमय अपने ही आत्मासे उत्पन्न सुखमें तृप्त हो जानेसे हर्ष विषाद रूप सांसारिक सुख तथा दुःखके विकारों से मुक्त हैं । केवलज्ञान व केवलदर्शनको रोकनेवाले आवरणोंके विनाशसे केवलज्ञान और केवलदर्शन सहित हैं, सहजशुद्ध चैतन्यभावमें परिणमन करनेसे तथा इन्द्रियोंके व्यापार आदि बाहरी द्रव्योंके आलम्बनके न रहनेसे वे परद्रव्यके संयोग रहित हैं, अपने स्वरूपमें निश्चल होनेसे स्थिर चैतन्य स्वभावके थारी हैं, उनके ऐसे आत्मस्वभावको तथा ध्यानके फलस्वरूप पूर्व संचित कर्मोकी स्थितिके विनाश और उनके गलनेको देखकर केवली भगवानके उपचारसे ध्यान कहा गया है क्योंकि निर्जराका कारण ध्यान है और निर्जरा यहाँ पाई जाती है यह अभिप्राय है। यहाँ शिष्यने प्रश्न किया कि केवली भगवानोंके जो यह परद्रष्योंके आलम्बनरहित ध्यान कहा है सो रहे क्योंकि केवलियोंके ध्यान उपचारसे ही कहा है परन्तु चारित्रसार आदि ग्रन्थोंमें यह कहा गया है कि छद्मस्थ अर्थात् असर्वज्ञ तपस्वी द्रव्य परमाणु या भाव परमाणुको ध्यायकर केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं सो वह ध्यान परद्रव्यके आलम्बनसे रहित कैसे घटता है ? आचार्य इसीका समाधान करते हैं-द्रव्य परमाणु शब्दसे द्रव्यकी सूक्ष्मताको तथा भाव परमाणु शब्दसे भावकी सूक्ष्मताको लेना योग्य है, पुद्गल परमाणुको लेना योग्य नहीं है । सर्वार्थसिद्धिकी टिप्पणीमें यही व्याख्यान कहा गया है। यहाँ भी इस विवाद में पड़े वाक्यका वर्णन किया जाता है । यहाँ द्रव्य शब्दसे आत्म- द्रव्य लेना योग्य है तथा परमाणुका अर्थ है रागद्वेषादिकी उपाधिसे रहित सूक्ष्म अवस्था । आत्मद्रव्यकी सूक्ष्मताका नाम द्रव्य परमाणु है । यहाँ सूक्ष्मावस्था इसीलिये ली गई है कि यह निर्विकल्प समाधिका विषय है । ऐसा द्रव्य परमाणु शब्दका व्याख्यान जानना। भाव शब्दसे उसी आत्मद्रव्यका स्वसंवेदन ज्ञान परिणाम लेना योग्य है । इस भावका परमाणु अर्थात् रागादि विकल्प रहित सूक्ष्म परिणाम सो भाव परमाणु है। इसमें सूक्ष्मपना इसीलिये है कि वह

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