Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

Previous | Next

Page 384
________________ मोक्षमार्ग प्रपंच सूचिका चूलिका ३८० आत्मासे ( अवियम् ) अभिन्न या एकरूप ( चरदि) आचरण करता है [ सो ] वही [ सगं चरिवं ] स्वचारित्रको [ चरदि] आचरण करता है । विशेषार्थ - जो योगी पाँचों इन्द्रियोंके विषयोंकी इच्छा और ममताभावको आदि ले सर्व विकल्प जालोंसे रहित होकर ममत्वके कारणभूत सर्व बाहरी परद्रव्योंमें अपनापना, उपादेयबुद्धि, आलंबनबुद्धि या ध्येयबुद्धिको छोड़ देता है तथा जो पहले विकल्प सहित अवस्थामें ऐसा ध्याता था कि मैं ज्ञाता हूँ, दृष्टा हूँ, अब निर्विकल्पसमाधिके समयमें अनन्तज्ञान व अनन्त आनन्द आदि गुण और स्वभावमय आत्मासे इन ज्ञानदर्शन विकल्पको एकरूप करके अनुभव करता है सो ही महात्मा जीवन मरण, लाभ अलाभ, सुख दुःख, निन्दा प्रशंसा आदिमें समताभावके अनुकूल वीतराग सदा आनन्दमय अपने आत्मामें अनुभव रूप आत्मिक चारित्रका पालनेवाला होता है । । १५९ ।। इस तरह निर्विकल्प स्वसंवेदन रूप स्वसमयका ही पुनः विशेष व्याख्यान करते हुए दो गाथाएँ पूर्ण हुई । निश्चयमोक्षमार्गसाधनभावन पूर्वोद्दिष्टव्यवहारमोक्षमार्गनिर्देशोऽयम् । सम्मत्तं धम्मादी - सद्दहणं णाण-मंग-पुव्वगदं । चेट्ठा तवम्हि चरिया बवहारो मोक्ख- मग्गो त्ति ।। १६० । धर्मादिश्रद्धानं सम्यक्त्वं ज्ञानमङ्गपूर्वगतम् । चेष्टा तपसि चर्या व्यवहारो मोक्षमार्ग इति ।। १६० ।। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । तत्र धर्मादीनां द्रव्यपदार्थविकल्पवतां तत्त्वार्थश्रद्धानभावस्वभावं भावान्तरं श्रद्धानाख्यं सम्यक्त्वं तत्त्वार्थश्रद्धाननिर्वृत्तौ सत्यामङ्गपूर्वगतार्थपरिच्छित्तिर्ज्ञानम्, आचारादिसूत्रप्रपञ्चितविचित्रयतिवृत्तसमस्तसमुदयरूपे तपसि चेष्टा चर्या इत्येषः स्वपरप्रत्ययपर्यायाश्रितं भिन्नसाध्यसाधनभावं व्यवहार नयमाश्रित्यानुगम्यमानो मोक्षमार्ग: कार्तस्वरपाषाणार्पितदीप्तजातवेदोवत्समाहितान्तरङ्गस्य प्रतिपदमुपरितनशुद्ध भूमिकासु परमरम्यासु विश्रान्तिमभिन्नां निष्पादथन्, जात्यकार्तस्वरस्येव शुद्धजीवस्य कथंचिद्भिन्नसाध्यसाधनभावाभावात्स्वयं शुद्धस्वभावेन विपरिणममानस्यापि निश्चयमोक्षमार्गस्थ साधन भावभापद्यत इति । । १६० ।। अन्वयार्थ--( धर्मादिश्रद्धानं सम्यक्त्वम् ) धर्मास्तिकाय आदिका श्रद्धान सो सम्यक्त्व, ( अङ्गपूर्वगतम् ज्ञानम् ) अंगपूर्वसम्बन्धी ज्ञान सो ज्ञान और ( तपसि चेष्टा चर्या) तपमें चेष्टा ( प्रवृत्ति ) सो चारित्र - ( इति ) इस प्रकार ( व्यवहारः मोक्षमार्गः ) व्यवहारमोक्षमार्ग है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421