Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 374
________________ ३७० मोक्षमार्ग प्रपंच सूचिका चूलिका किंपि' ।।१५४।। एवं जीवस्वभावकथनेन जावस्वभावानयतचरितमव मोक्षमार्ग इति कथनेन च प्रथमस्थले गाथा गाता। पीठिका-इसके आगे मोक्षप्राप्तिके मुख्य कारण निश्चय व व्यवहार मोक्षमार्गमय चूलिका रूप विशेष व्याख्यान में तीसरा महा अधिकार है, जिसमें "जीवसहाओ णाणं" इत्यादि बीस गाथाएँ हैं । इन बीस गाथाओंके मध्यमें केवलज्ञान, केवलदर्शन स्वभाव शुद्ध जीयका स्वरूप कथन करते हुए जीवके स्वभावमें स्थिरतारूप चारित्र है सो ही मोक्षमार्ग है, ऐसा कहते हुए "जीवसहाओ णाणं" इत्यादि प्रथम स्थलमें सूत्र एक, फिर शुद्धात्माके आश्रित स्वसमय है तथा मिथ्यात्व व रागादि विभाव परिणामोंके आश्रित परसमय है ऐसा कहते हुए "जीवसहाव णियदो" इत्यादि सूत्र एक है। फिर शुद्धात्माके अद्धान आदि रूप स्वसमय है उससे विलक्षण परसमय है उसीका ही विशेष वर्णन करनेकी मुख्यता से "जो परदव्वेहि" इत्यादि गाथा दो हैं, पश्चात् रागादि विकल्पोंसे रहित स्वसंवेदन स्वरूप स्वसमयका ही फिर भी विशेष खुलासा करनेकी मुख्यतासे "जो सव्वसंग" इत्यादि गाथाएँ दो हैं फिर वीतराग सर्वज्ञ द्वारा कहे हुए छः द्रव्यादिके सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान व पंच महाव्रत आदि चारित्ररूप व्यवहार मोक्षमार्गके निरूपणकी मुख्यतासे "धम्मादी सद्दहणं' इत्यादि पाँचवें स्थलमें सूत्र एक है । फिर व्यवहार रत्नत्रय द्वारा साधने योग्य अभेद रत्नत्रय स्वरूप निश्चय मोक्षमार्गको कहते हुए "णिच्छयणयेण' इत्यादि गाथाएँ दो हैं। फिर जिसको शुद्ध आत्माकी भावनासे उत्पन्न अतींद्रिय सुख ही ग्रहण करने योग्य मालूम होता है वही भाव सम्यग्दृष्टि है। इस व्याख्यानकी मुख्यतासे "जेण विजाण" इत्यादि सूत्र एक हैं। आगे निश्चय रत्नत्रयमय मार्गसे मोक्ष तथा व्यवहार रत्नत्रयमय मार्गसे पुण्यबंध होता है इस कथनकी मुख्यतासे "दंसणणाणचरित्ताणि' इत्यादि आठवें स्थलमें सूत्र एक है। आगे निर्विकल्प परसमाधि स्वरूप सामायिक नाम संयममें ठहरनेको समर्थ होनेपर भी जो उसको छोड़कर एकान्तसे सराग चारित्रके आचरण करनेको मोक्षका कारण मानता है वह तब स्थूल परसमय कहलाता है तथा जो उस समाधिरूप सामायिक संयम में ठहरना चाहकर भी उसके योग्य सामग्रीको न पाकर अशुभसे बचनेके लिये शुभोपयोगका आश्रय करता है वह सूक्ष्म परसमय कहा जाता है, इस व्याख्यानरूपसे "अण्णाणादो णाणी" इत्यादि गाथाएँ पाँच हैं। फिर तीर्थंकर आदिके पुराण व जीव आदि नव पदार्थक कहनेवाले आगमका ज्ञान प्राप्त करनेसे व उसमें भक्ति करनेसे यद्यपि उस कालमें पुण्याश्रव रूप परिणाम होनेसे मोक्ष नहीं होता है तथापि उसीके आधारसे कालांतरमें आस्रवरहित शुद्धो-पयोग परिणाम की सामग्री प्राप्त होनेपर मोक्ष होता है इस कथनकी मुख्यतासे

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