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नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन इन्द्रिय और मनके विकल्पोंका विषय नहीं है । ऐसा भाव परमाणुका ध्याख्यान जानना योग्य है।
यहाँ यह भाव है कि प्रथम अवस्थाके शिष्यों के लिये अपने चित्तको स्थिर करनेके लिये, तथा विषयाभिलाषा रूप ध्यानसे बचनेके लिये परम्परा मुक्तिके कारण ऐसे पंचपरमेष्ठी आदि परद्रव्य ध्यान करने योग्य होते हैं, परन्तु जब दृढतर ध्यानके अभ्याससे चित्त स्थिर हो जाता है तब अपना शुद्ध आत्मस्वरूप ही ध्यान करनेके योग्य है । ऐसा ही श्री पूज्यपादस्वामीने निश्चय ध्येयका व्याख्यान किया है "आत्मानमात्मा आत्मन्येवात्मनासौ क्षणमुपजनयन् सन् स्वयंभूः प्रवृत्तः" इस सूत्रका व्याख्यान यह है-जो आत्मा अपने ही आत्माको अपने ही आत्मामें, अपने ही आत्माके द्वारा क्षणमात्र भी-अर्थात् एक अन्तर्मुहूर्त भी प्रत्यक्ष रूपसे धारण करता है या अनुभव करता है, सो स्वयं सर्वज्ञ हो जाता है।
इस तरह परस्पर अपेक्षा सहित निश्चय तथा व्यवहारनयसे साध्य व साधक भावको जानकर ध्येयके सम्बन्धमें विवाद नहीं करना योग्य है ।।१५२।।
द्रव्यमोक्षस्वरूपाख्यानमेतत् । जो संवरेण जुत्तो णिज्जर-माणोध सव्व-कम्माणि । ववगद-वेदाउस्सो मुयदि भवं तेण सो मोक्खो ।।१५३।।
यः संवरेण युक्तो निर्जरयन्नथ सर्वकर्माणि ।
व्यपगतवेद्यायुष्को मुश्चति भवं तेन स मोक्षः ।।१५३।। अथ खलु भगवतः केवलिनो भावमोक्षे सति प्रसिद्धपरमसंवरस्योत्तरकर्मसन्ततौ निरुद्धायां परमनिर्जराकारणध्यानप्रसिद्धौ सत्यां पूर्वकर्मसंततौ कदाचित्स्वभावेनैव कदाचित्समुद्घातविधानेनायुः कर्मसमभूतस्थित्यामायुःकर्मानुसारेणैव निर्जीर्यमाणायामपुनर्भवाय तद्भवत्याग' समये वेदनीयायुर्नामगोत्ररूपाणां जीवेन सहात्यन्तविश्लेष; कर्मपुद्गलानां द्रव्यमोक्षः ।।१५३।।
इति मोक्षपदार्थव्याख्यानं समाप्तम्।। समाप्तं च मोक्षमार्गावयवरूपसम्यग्दर्शनज्ञानविषयभूतनवदार्थव्याख्यानम् ।।
अन्वयार्थ—( यः संवरेण युक्तः ) जो संवरसे युक्त है ऐसा ( केवलज्ञानप्राप्त ) जीव ( निर्जरयन् अथ सर्वकर्माणि ) सर्वकर्मों की निर्जरा करता हुआ [ व्यपगतवेद्यायुष्क: ] वेदनीय
और आयु रहित होकर [भवं मुश्चति ] भवको ( नामकर्म गोत्र कर्मको) छोड़ता है, [ तेन] इसलिये ( स: मोक्षः ) वह मोक्ष है।