Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 370
________________ नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन गाथाचतुष्टयमजीवपदार्थनिरूपणार्थं ततश्च गाथात्रयं पुण्यपापादिसप्तपदार्थपीठिकारूपेण सूचनार्थ तदनन्तरं गाथाच्चतुष्टयं पुण्यपापपदार्थद्वयविवरणार्थ ततश्च गाथाषट्कं शुभाशुभास्त्रवव्याख्यानार्थ तदनन्तरं सूत्रत्रयं संवरपदार्थस्वरूपकथनार्थं ततश्च गाथात्रयं निर्जरापदार्थव्याख्याने निमित्तं तदनंतरं सूत्रत्रयं बंधपदार्थकशनार्थ नन्दनंतर शुनचतुष्टयं मोक्षपदार्थव्याख्यानार्थ चेति दशभिरंतराधिकारैः पंचाशद्गाथाभिर्व्यवहारमोक्षमार्गावयवभूतयोर्दर्शनज्ञानयोविषयभूतानां जीवादिनवपदार्थानां प्रतिपादक: द्वितीयमहाधिकारः समाप्तः ।।२।। हिन्दी ता० -उत्थानिका--आगे सर्वसे छूटना वही द्रव्यमोक्ष है ऐसा कहते हैं___अन्वय सहित सामान्यार्थ-( जो ) जो कोई ( संवरेण जुत्तो) परम संवर सहित होता हुआ ( अध) और (सव्वकम्माणि ) सर्व कर्मोकी ( णिज्जरमाणो) निर्जरा करता हुआ ( वदगदवेदाउस्सो) वेदनीयकर्म और आयुकर्मको क्षय करता हुआ ( भवं ) नाम और गोत्र कर्मसे बने संसारको ( मुयदि ) त्याग देता है ( तेण ) इस कारणसे ( सो) वही जीव ( मोक्खो) मोक्ष स्वरूप हो जाता है अथवा अभेद नयसे वही पुरुष मोक्ष है। विशेषार्थ-तेरहवें गुणस्थानवर्ती केवली भगवान भावमोक्ष हो जाने पर, निर्विकार स्वात्मानुभवसे साधनेयोग्य पूर्ण संवरको करते हुए तथा पूर्वमें कहे प्रमाण शुद्ध आत्मध्यानसे साधने योग्य चिरकालके संचित कर्मोंकी पूर्ण निर्जराका अनुभव करते हुए जब उनके जीवनमें अन्तर्मुहूर्त शेष रह जाता है तब यदि वेदनीय, नाम, गोत्र इन तीन कर्मोकी स्थिति आयुकर्मकी स्थितिसे अधिक होती है तब उन तीन कर्मोंकी अधिक स्थितिको नाश करने के लिये व संसारकी स्थितिको विनाश करनेके लिये दंड, कपाट, प्रतर, लोकपूर्ण ऐसे चार रूपसे केवलीसमुद्घातको करके अथवा यदि उन तीन कर्मोकी स्थिति आयुकर्मके समान ही होती है तो केवलीसमुद्घात न करके अपने शुद्ध आत्मामें निश्चल वर्तनरूप सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति नाम तीसरे शुक्लध्यानको उपचारसे करते हैं । फिर सयोगिगुणस्थानको उल्लंघ कर अयोगिगुणस्थानमें आते हैं । यहाँ सर्व आत्माके प्रदेशोंमें आह्लादरूप एक आकारमें परिणमन करते हुए परम समरसीभावरूप सुखामृतरसके आस्वादसे तृप्त, सर्व शील और गुणके भण्डार समुच्छिन्नक्रिया चौथे शुक्लध्यान नामके परम यथाख्यात चारित्रको प्राप्त करते हैं। फिर इस गुणस्थानके अन्तिम दो समयमेंसे पहले समयमें शरीरादि बहत्तर प्रकृतियोंका व अन्त समयमें वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र इन चार कर्मोंकी तेरह प्रकृतियोंका जीवसे अत्यन्त वियोग हो जाता है। इसीको द्रव्य मोक्ष कहते हैं। सब कर्मोसे अलग होनेपर सिद्ध आत्मा एक समयमें लोकके अग्रभागमें जाकर विराजमान हो जाते हैं। शरीरोंसे छूटनेपर सिद्ध आत्माकी गति घुमाए हुए कुम्हारके चाक की तरह पूर्वके प्रयोगसे,

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