Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 360
________________ ३५६ नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन अन्वयार्थ—( चतुर्विकल्प: हेतुः ) ( द्रव्यमिथ्यात्वादि ) चार प्रकारके हेतु ( अष्टविकल्पस्य कारणम् ) आठ प्रकारके कर्मोके कारण ( भणितम् ) कहे गये हैं, [ तेषाम् अपि च ] उनके भी ( रागादय: ) ( जीवके ) रागादिभाव कारण हैं, ( तेषाम् अभाव ) रागादिभावों के अभावमें ( न बध्यन्ते ) जीव नहीं बंधते। टीका—यह, मिथ्यात्वादि द्रव्यपर्यायोंको ( -द्रव्यमिथ्यात्वादि पुद्गलपर्यायोंको ) भी ( बंधके ) बहिरंग-कारणपनेका प्रकाशन है। ग्रन्थान्तरमें ( अन्य शास्त्रमें ) मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग इन चार प्रकारके द्रव्यहेतुओंको ( द्रव्यप्रत्ययोंको ) आठ प्रकारके कर्मोंके कारणरूपसे बंधहेतु कहे हैं। उनके भी बंधहेतुपनेके हेतु जीवभावभूत रागादिक हैं क्योंकि रागादिभावोंका अभाव होनेसे द्रव्यमिथ्यात्व. द्रव्य-असंयम, द्रव्यकषाय और द्रव्ययोगके सद्भावमें भी जीव बँधते नहीं हैं, इसलिये रागादिभावोंको अंतरंग बंधहेतुपना होनेके कारण निश्चयसे बंधहेतुपना है ऐसा निर्णय करना ।।१४९।। इस प्रकार बंधपदार्थका व्याख्यान समाप्त हुआ। सं० ता०-अथ न केवलं योगो बंधस्य बहिरंगनिमित्तं भवंति मिथ्यात्वादि द्रव्यत्वादि द्रव्यप्रत्यया अपि रागादिभावप्रत्ययापेक्षया बहिरंगनिमित्तमिति समर्थयति, हेदू हि-हेतुः कारणं हि स्फुटं । कतिसंख्योपेतः । चहुवियप्पो-उदयागतमिथ्यात्वाविरतिकषाययोगद्रव्यप्रत्ययरूपेण चतुर्विकल्पो भवति। कारणं भणिय-स च द्रव्यप्रत्ययरूपश्चतुर्विकल्पो हेतु; कारणं भणित: । कस्य । अट्ठवियप्पस्स-रागाधुपाधिरहितसम्यक्त्वाधष्टगुणसहितपरमात्मस्वभावप्रच्छादकस्य नवतराष्टविधद्रव्यकर्मणः । तेसि पि य रागादी-तेषामपि रागादयः तेषां पूर्वोक्तद्रव्यप्रत्ययानां रागादिविकल्परहितशुद्धात्मद्रव्यपरिणतेभित्रा जीवगतरागादय: कारणा भवति । कस्मादिति चेत् ? तेसिमभावे ण बझंते-यत: कारणात्तेषां जीवगतरागादिभावप्रत्ययानामभावे द्रव्यप्रत्ययेषु विद्यमानेष्वपि सर्वेष्टानिष्ट विषयममत्वाभावपरिणता जीवा न बध्यंत इति । तथाहि-यदि जीवगतरागायभावेपि द्रव्यप्रत्ययोदयमात्रेण बंधो भवति तर्हि सर्वदैव बंध एव । कस्मात् । संसारिणां सर्वदैव कर्मोदयस्य विद्यमानत्वादिति । तस्माद ज्ञायते नवतरद्रव्यकर्मबंधस्योदयागतद्रव्यप्रत्यया हेतवस्तेषां च जीवगतरागादयो हेतव इति । तत: स्थितं न केवलं योगा बहिरंगबंधकारणं द्रव्यप्रत्यया अपीति भावार्थः ।।१४९।। हिन्दी ता०-उत्थानिका-आगे कहते हैं कि केवल योग ही बंधके बाहरी निमित्त कारण नहीं है किन्तु मिथ्यात्व आदि द्रव्यकर्म भी रागादि भावरूप कारणकी अपेक्षासे बाहरी निमित्त हैं। अन्वय सहित सामान्यार्थ-(चदुब्बियप्पो) चार प्रकार मिथ्यात्वादि ( हेदू) कारण

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