Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 348
________________ Tayarर्थ - मोक्षमार्ग वर्णन ३४४ इस तरह नवं पदार्थोंके कहनेवाले दूसरे महाअधिकारमें संवर पदार्थके व्याख्यानसे तीन गाथाएँ पूर्ण हुई । सातवाँ अन्तर अधिकार समाप्त हुआ । अथ निर्जरापदार्थव्याख्यानम् निर्जरास्वरूपाख्यानमेतत् । संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं । । १४४ । । संवरयोगाभ्यां युक्तम्तणेभिर्यक्षेणते बहुविधैः । कर्मणां निर्जरणं बहुकानां करोति स नियतम् ।। १४४ । । शुभाशुभ परिणामनिरोधः संवरः, शुद्धोपयोगो योगः । ताभ्यां युक्तस्तपोभिरनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशादिभेदाद् बहिरङ्गैः प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानभेदादन्तरङ्गैश्च बहुविधैर्यश्चेष्टते स खलु बहूनां कर्मणां निर्जर करोति । तदत्र कर्मवीर्यशातनसमर्थो बहिरङ्गान्तरंगतपोभिर्वृहितः शुद्धोपयोगो भावनिर्जरा, तदनुभावनीरसी भूतानामेकदेशसंक्षयः समुपात्तकर्मपुत्लानां द्रव्यनिर्जरेति । । १४४ । । अब निर्जरापदार्थका व्याख्यान है। अन्वयार्थ–[ संवरयोगाभ्याम् युक्तः ] संवर और योगसे ( शुद्धांपयोगसे ) युक्त ऐसा ( यः ) जो जीव (बहुविधैः तपोभि: चेष्टते) बहुविध तपो सहित वर्तता है, ( स ) वह [ नियतम् ] नियमसे (बहुकानाम् कर्मणाम् ) अनेक कर्मोकी निर्जरणं करोति ] निर्जरा करता हैं । टीका - यह, निर्जराके स्वरूपका कथन है । संवर अर्थात् शुभाशुभ परिणामका निरोध, और योग अर्थात् शुद्धोपयोग, उनसे ( संवर और योगसे ) युक्त ऐसा जो ( पुरुष ), अनशन, अवमौंदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन तथा कायक्लेशादि भेदोंवाले बहिरंग तपों सहित और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग तथा ध्यान ऐसे भेदोंवाले अंतरंग तप सहित- इस प्रकार बहुविध तपो सहित वर्तता है वह ( पुरुष ) वास्तवमें अनेक कर्मोकी निर्जरा करता है। इसलिये यहाँ [ इस गाथामें ऐसा कहा कि ] कर्मके वीर्यका ( कर्मकी शक्तिका ) शातन ( नष्ट ) करने में समर्थ तथा बहिरंग अन्तरंग तपोद्वारा वृद्धिको प्राप्त शुद्धोपयोग भावनिर्जरा हैं और उसके प्रभावसे नीरस हुए ऐसे समुपात्त पहिलेके उपार्जित कर्मपुद्गलोंका एकदेश संक्षय सो द्रव्यनिर्जरा है ।। १४४ ।।

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