________________
नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन अथ पूर्वसूत्रकथितपापानवस्य संवरमाख्याति, -- इन्द्रियकषायसंज्ञा णिग्गहिदा-निहीता निषिद्धा, जेहि-यैः कर्तृभूतैः पुरुषैः सुदु-सुष्ठु विशेषेण । किंकृत्वा । पूर्व रिस्थत्वा । बत्र ? मग्गम्हि संवर-कारणरत्नत्रयलक्षणे मोक्षमागें । कथं निग्रहीता । यावत् यस्मिन् गुणस्थाने यावंतं कालं यावतांशेन “सोलस पणवीस णभं दस चर छक्केक्क बंधवोछिणा | दुगतीस चदुरपुञ्चे पण सोलस जोगिणों एक्को' इति 'गाथाकथितत्रिभंगीक्रमेण तावत्तस्मिन् गुणस्थान तावकानं तावतांशेन म्वकीयम्बकीयगुणस्थानपरिणामानुसारेण । तेसिं तेषां पूर्वोक्तपुरुषाणां । पिहिद-- पिहितं प्रच्छादितं झंपितं भवति । किं ? पापामवच्छिई-घापास्रवछिद्रं पापागमनद्वारमिति । अत्र सूत्रे पूर्वगाथोदितद्रव्यपापा-स्रवकारणभूतस्य भावपापासवस्य निरोधः द्रव्यपापानवसंवरकारणभृतो भावपापास्वसंवरा ज्ञातव्य इति सूत्रार्थ: ।।१४१।।
पीठिका-आगे संतर तन्त्रका गल्यान करते हैं, जो मंबर अपनी प्रसिद्धि, पूजा, लाभ व देखे सुने अनुभवे हुए भोगोंकी इच्छा रूप निदान बंध आदि सर्व शुभ व अशुभ संकल्पोंसे रहित शुद्धात्माके अनुभव रूप लक्षणमयी परम उपेक्षा संयमके द्वारा सिद्ध किया जाता है। इस कथनमें "इन्दियकसाय" इत्यादि तीन गाथाओंसे समुदाय पातनिका है ।
हिन्दी ता०-उत्थानिका-आगे पहली गाथामें कहे हुए पापके आस्रवके संवरके लिये कहते हैं।
अन्वय सहित सामान्यार्थ-( जेहिं) जिनके द्वारा ( सुष्टुमग्गम्मि) उत्तम रत्नत्रय मार्गमें ठहरकर ( जावत्) जबतक (इन्द्रियकषायसण्णा) इन्द्रिय, कषाय व चार आहारादिक संज्ञाएँ ( णिग्गहिदा) रोक दिये जाते हैं ( तावत् ) तबतक ( तेहिं) उन्हींके द्वारा ( पावासव छिई) पापके अनेक छेद (पिहियं ) बन्द कर दिया जाता है।
विशेषार्थ-यह जीव जिस गुणस्थान में जाता है वहाँ जबतक ठहरता है उतने कालतक उन कर्म प्रकृतियोंका संवर रहता है, जिनका वहाँ बन्धका अभाव आगममें बताया गया है । गुणस्थानके परिणामोंके अनुसार ही कर्मका आस्रव रुकता है। कहा भी है
नीचे लिखी गाथाके अनुसार कर्म प्रकृतियों का आस्रव तथा बंध गुणस्थान गुणस्थान प्रति रुकता जाता है
बंध योग्य १२० कर्मकी उत्तर प्रकृतियाँ हैं उनमें मिथ्यात्व गुणस्थानके आगे सोलहका, सासादनसे आगे पच्चीसका, चौथे अविरतिसे आगे दसका, पाँचवें देशविरतिसे आगे चारका, प्रमत्तविरत नामके छठेसे आगे छःका, सातवें अप्रमत्तसे आगे एकका, आठवें अपूर्वकरणसे आगे छत्तीसका, नौवें अनिवृत्तिकरणसे आगे पाँचका, दसवें सूक्ष्मसांपरायसे