Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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३०८
नवपदार्थ - मोक्षमार्ग वर्णन अथ अजीवपदार्थ व्याख्यानम्
आकाशादीनामेवाजीवत्वे हेतूपन्यासोऽयम् ।
आगास-काल- पुग्गल - धम्मा- धम्मेसु णत्थि जीवगुणा । तेसिं अचेद णत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ।। १२४ । । आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु न सन्ति जीवगुणाः । तेषामचेतनत्वं भणितं जीवस्य चेतनता ।। १२४ ।।
आकाशकालपुद्गलधर्भाधर्मेषु चैतन्यविशेषरूपा जीवगुणा नो विद्यन्ते, आकाशादीनां तेषामचेतनत्वसामान्यत्त्वात् । अचेतनत्वसामान्यञ्चाकाशादीनामेव, जीवस्यैव चेतनत्वासामान्यादिति ।। १२४ ।।
अब, अजीव पदार्थका व्याख्यान है ।
अन्वयार्थ – ( आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु ) आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्ममें ( जीवगुण): न सन्ति ) जीवके गुण नहीं हैं, ( क्योंकि ) [ तेषाम् अचेतनत्वं भणितम् ] उनके अचेतनपना कहा है, ( जीवस्य चेतनता ) जीवके चेतना कही है।
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टीका: - यह, आकाशादिका ही अजीवपना दर्शानेके लिये हेतुका कथन है।
आकाश, काल, पुगल, धर्म और अधर्ममें चैतन्यविशेषरूप जीवगुण विद्यमान नहीं हैं, क्योंकि उन आकाशादिके अचेतनत्वसामान्य है। और अचेतनत्वसामान्य आकाशादिके ही है, क्योंकि जीवके ही चेतनत्वसामान्य है ।। १२४||
सं०ता० - अथ भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्ममतिज्ञानादिविभावगुणनरनारकादिविभावपर्यायरहितः केवलज्ञानाद्यनंतगुणस्वरूपो जीवादिनवपदार्थांतर्गतो भूतार्थपरमार्थरूपः शुद्धसमयसाराभिधान उपादेयभूतो योऽसौ शुद्धजीत्रपदार्थस्तस्मात्सकाशाद्विलक्षणस्वरूपस्याजीबपदार्थस्य गाथाचतुष्टयेन व्याख्यानं क्रियते । तत्र गाथाचतुष्टयमध्ये अजीवत्वप्रतिपादनमुख्यत्वेन "आयासकाल” . इत्यादिपाठक्रमेण गाथात्रयं तदनंतरं भेदभावनार्थं देहगतशुद्धजीवप्रतिपादनमुख्यत्वेन "अरसमरूवं" इत्यादि सूत्रमेकं एवं गाथाचतुष्टयपर्यंतं स्थलद्वयेनाजीवाधिकारव्याख्याने समुदायपातनिका | तद्यथा । अथाकाशादीनामजीवत्वे कारणं प्रतिपादयति, आकाश कालपुद्गलधर्माधर्मेष्वनंतज्ञानदर्शनादयो जीवगुणाः न सन्ति ततः कारणात्ते षामचेतनत्वं भणितं । कस्मात् तेषां जीवगुणा न संतीति चेत् ? युगपज्जगत्त्रयकालत्रयवर्तिसमस्तपदार्थपरिच्छेदकत्वेन "जीवस्यैव चेतकत्वादिति सूत्राभिप्रायः ।। १२४ ।।
पीठिका - आगे भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म तथा मतिज्ञान आदि विभावगुण व नर नारक आदि विभावपर्यायोंसे रहित व केवलज्ञानादि अनन्तगुणस्वरूप तथा जीव आदि नौ
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