Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन ___ अन्वयार्थ-( अंडेषु प्रवर्धमानाः ) अंडेमें वृद्धि पानेवाले प्राणी, ( गर्भस्थाः ) गर्भ में रहे हुए प्राणी ( च ) और ( मूर्छा गता; मानुषाः ) मूर्छा प्राप्त मनुष्य ( यादृशाः ) जैसे ( बुद्धिपूर्वक व्यापार रहित होते हुये भी ) जीव हैं, ( तादृशाः ) वैसे ही ( एकेन्द्रियाः जीवाः ) एकेन्द्रिय भी जीव ( ज्ञेयाः ) जानना।
टीका-यह, एकेन्द्रियोंको चैतन्यका अस्तित्व होने सम्बंधी दृष्टान्तका कथन है।
अंडे में रहेहुए, गर्भमें रहेहुए और मूर्छा पायेहुए (प्राणियों) के बुद्धिपूर्वक व्यापार नहीं देखा जाता तथापि जीवत्वका, जिस प्रकार निश्चय किया जाता है, उसी प्रकार एकेन्द्रियोंके जीवत्वका भी निश्चय किया जाता है, क्योंकि दोनोंमें बुद्धिपूर्वक व्यापारका अदर्शन समान है ।।११३॥
संता-अथ पृथिवीकायाघेकेन्द्रियाणां चैतन्यास्तित्वविषये दृष्टान्तमाह-अंडेषु प्रवर्तमानास्तिपंचो गर्भस्था मानुषा मूर्खागताश्च यादृशा ईहापूर्वव्यवहाररहिता भवन्ति तादृशा एकेन्द्रियजीवा ज्ञेया इति । तथाहि-यथाण्डजादीनां शरीरपुष्टिं दृष्ट्वा बहिरंगव्यापाराभावेपि चैतन्यास्तित्वं गम्यते म्लानां दृष्ट्वा नास्तित्वं च ज्ञायते तथैकेन्द्रियाणामपि । अयमत्र भावार्थ:-परमार्थेन स्वाधीनतानंतज्ञानसुखसहितोपि जीव: पश्चादज्ञानेन पराधीनेन्द्रियसुखासक्तो भूत्वा यत्कर्म बध्नाति तेनांडजादिसदृशमेकेन्द्रियजं दुःखितं चात्मानं करोति ।।११३।।।
एवं पंचस्थावरव्याख्यानमुख्यतया गाथाचतुष्टयेन द्वितीयस्थलं गतं ।
हिंदी ता०-उत्थानिका-आगे पृथिवीकाय आदि एकेन्द्रियजीवोंमें चेतना गुण है इसे बतानेके लिये दृष्टान्त कहते हैं
अन्वय सहित सामान्यार्थ-( जारिसया) जिस प्रकार ( अंडेसु) अंडोंमें ( पवटुंता) बढ़ते हुए, (गल्भत्था) गर्भ में तिष्ठते हुए (य) और ( मुच्छगया) मूर्खाको प्राप्त हुए ( माणुसा) मनुष्य जीते हैं ( तारिसया) उसी तरहसे ( एगेंदिया जीवा) एकेन्द्रिय जीव ( ज्ञेया) जानने योग्य हैं।
विशेषार्थ-जैसे अंडोंके भीतरके तिर्यंच व गर्भस्थ पशु या मनुष्य या मूर्खागत मानव इच्छापूर्वक व्यवहार करते हुए नहीं दिखते हैं तैसे इन एकन्द्रियोंको जानना चाहिये अर्थात् अंडोंमें जन्मनेवाले प्राणियोंके शरीरकी पुष्टि या वृद्धिको देखकर बाहरी व्यापार करना न दीखनेपर भी भीतर चैतन्य है ऐसा जाना जाता है, यही बात गर्भमें आए हुए पशु या मानवोंकी भी है। गर्भ बढ़ता जाता है इसीसे चेतनाको सत्ता मालूम होती है। मूर्खागत मानव तुरंत मूर्छा छोड़ सचेत होजाता है। इसी तरह एकेन्द्रियोंके भीतर भी जानना