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नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन हिंदी ता०-उत्थानिका-आगे द्वीन्द्रिय जीवोंके भेदोंको कहते हैं
अन्वय सहित सामान्यार्थ-( संबुक्क ) संधूक एक जातीका क्षुद्र शंख, ( मादुवाहा ) मातृवाह ( संखा) संख (सिप्पी) सीप (य) और ( अपादगा) पाँव रहित (किमी) कृमी जैसे गिंडोला कृमि, लट आदिक (जे) जो ( रसं) रस या स्वादको व ( फासं) स्पर्शको ( जाणंति ) जानते ( ते ) वे ( जीवा) जीव ( बेइंदिया) द्वीन्द्रिय हैं ।
विशेषार्थ-शुद्ध निश्चयनयसे यह जीव द्वीन्द्रियके स्वरूपसे पृथक् तथा केवलज्ञान और केवलदर्शनसे अभिन्न अर्थात् तन्मय शुद्ध अस्तिकाय है। ऐसे शुद्ध आत्माकी भावनाके द्वारा जो सदा आनंदमयी एक लक्षण सुख-रसका आस्वाद आता है उसको न पाकर स्पर्शन
और इसना इंदिर आदि विषयों गुणो रसास्वादमें मगन जीवोंने जो द्वीन्द्रिय जातिनामा नामकर्मका बंध किया था उस कर्मके उदय कालमें वीर्यातराय और स्पर्शनेंद्रियके आवरण नामा मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमके लाभसे शेष इंद्रियों के आवरण रूप कर्मोके उदय होनेपर तथा नोइन्द्रिय जो मन उसके आवरण रूप कर्मके उदय होने पर ये जीव द्वीन्द्रिय बिना मनके होते हैं ।।११४।।
श्रीन्द्रियप्रकारसूचनेयम् । जूगा-गुंभी-मक्कण-पिपीलिया विच्छया-दिया कीडा । जाणंति रसं फासं गंधं तेइन्दिया जीवा ।।११५।।
यूकाकुंभीमत्कुणपिपीलिका वृश्चिकादयः कीटाः ।
जानन्ति रसं स्पर्श गंधं त्रीद्रियाः जीवाः ।।११५।। एते स्पर्शनरसनघ्राणेंद्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति स्पर्शरसगंधानां परिच्छेत्तारस्त्रीन्द्रिया अमनसो भवंतीति ।।११५।।
अन्वयार्थ-( यूकाकुंभीमत्कुणपिपीलिकाः ) नँ, कुंभी, खटमल, चींटी और ( वृश्चिकादयः) बिच्छू आदि ( कीटा: ) जन्तु ( रसं स्पर्श गंधं ) रस, स्पर्श और गंधको ( जानन्ति ) जानते हैं, ( त्रीन्द्रियाः जीवाः ) वे वीन्द्रिय जीव हैं।
टीका-यह, त्रीन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना है।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रियके और घ्राणेन्द्रियके आवरणके क्षयोपशमके कारण तथा शेष इन्द्रियोंके आवरणका उदय तथा उनके आवरणका उदय होने स्पर्श, रस और गंधको जाननेवाले यह (जूं आदि ) जीव मनरहित त्रीन्द्रिय जीव हैं ॥११५।।