Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२९४
नवपदार्थ--मोक्षमार्ग वर्णन टीका-यह, चतुरिन्द्रिय जीवोंके प्रकारकी सूचना है।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रियके आवरण के क्षयोपशमके कारण तथा श्रोत्रेन्द्रियके आवरणका उदय तथा मनके आवरणका उदय होनेसे स्पर्श, रस, गंध और वर्णको जाननेवाले यह ( डांस आदि ) जीव मनरहित चतुरिन्द्रिय जीव हैं ।।११६।।
सं० ता०-अथ चतुरिन्द्रियभेदान् प्रदर्शयति,-उद्देशमशकमक्षिकामधुकरीभ्रमरपतंगाधा: कर्तारः स्पर्शरसगंधवर्णान् जानन्ति यतस्ततः कारणाच्चतुरिन्द्रिया भवति । तद्यथा-निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानभावनोत्पन्नसुखसुधारसपानविमुखैः स्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुरादिविषयसुखानुभवाभिमुखैर्बहिरात्मभिर्यदुपार्जितं चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म तद्विपाकाधीना तथा वीर्यातरायस्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुरिन्द्रियावरणक्षयोपशमलाभात् श्रोत्रेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति चतुरिन्द्रिया अमनसोभवंतीत्यभिप्राय: ।। १६६।। इति विकलेन्द्रियव्याख्यानमुख्यतया गाथात्रयेण तृतीयस्थलं गतं ।
हिंदी ता०-उत्थानिका-आगे चार इन्द्रियधारी जीवोंके भेद बताते हैं
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(उइंस ) डांस [ मसय ] मच्छर, [ मक्खि ] मक्खी, [ मधुकरि ] मधुमक्खी , [ भमरा ] भौंरा [ पतंगमादीया ] पतंग आदिक [ रूपं ] वर्णको [ रसं ] स्वादको [च ] और [गंधं ] गंधको, [पुण] तथा [ फासं ] स्पर्शको [ आणंति] जानते हैं [ते वि] वे ही चौइन्द्रिय जीव हैं।
विशेषार्थ-जो मिथ्यादृष्टि जीव निर्विकार स्वसंवेदन ज्ञानकी भावनासे उत्पन्न जो सुख रूपी अमृतका पान उससे विमुख हैं तथा स्पर्शन, रसना, घ्राण के चक्षु आदि इन्द्रियोंके विषयों, सुखके अनुभवमें लीन हैं वे चौइन्द्रिय जाति नामा नामकर्म बाँधते हैं । इस नाम कर्मके उदयके आधीन होकर तथा वीर्यान्तराय और स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु इन्द्रियका आवरणरूप मतिज्ञानावरणके क्षयोपशमके लाभसे और कर्णेदिय तथा नोइन्द्रियके आवरणके उदयसे चार इन्द्रियधारी मन रहित होते हैं, यह अभिप्राय है ।।११६ ।।
इस तरह विकलेन्द्रियके व्याख्यानकी मुख्यतासे तीन गाथाओंके द्वारा तीसरा स्थल पूर्ण हुआ।
पंचेन्द्रियप्रकारसूचनेयम् । सुर-णर-णारय-तिरिया वण्ण-रस-प्फास-गंध-सद्दण्हु । जल-चर-थल-चर-खचरा बलिया पंचेन्द्रिया जीवा ।।११७।।