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पंचास्तिकाय प्राभृत है उन्हींके यह पूर्ण मोक्षमार्ग होता है । जहाँतक कषाय है और अशुद्ध आत्माका लाभ है वहाँतक पूर्ण मोक्षमार्ग नहीं होता है । यहाँपर अन्वय व व्यतिरेक से आठ तरहका नियम देख लेना चाहिये । अन्वय व्यतिरेक स्वरूप कहा जाता है-जिसके होते हुए कार्य संभव हो उसे अन्वय व जिसके न होते हुए कार्य संभव न हो उसे व्यतिरेक कहते हैं। जैसे यहाँ उदाहरण है कि निश्चय व्यवहाररूप मोक्ष कारणके होते हुए ही मोक्ष कार्य होता है यह विधिरूप अन्वय कहा जाता है तथा इस मोक्ष कारणके अभाव होने पर मोक्षरूपी कार्य नहीं होता है यह निषेधरूप व्यतिरेक है । इसीको और भी दृढ़ करते हैं जैसे जहाँ अग्नि आदि कारण होंगे वहीं उसका धूआँ आदि कार्य हो सकते हैं जहाँ अग्नि आदिका अभाव होगा वहाँ उसके धूम्र आदि कार्य नहीं होंगे। क्योंकि धूमादि कार्यका अग्नि आदि कारण है इसतरह कार्य और कारणका नियम है यह अभिप्राय है ।। १०६ ।।
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणां सूचनेयम् । सम्मत्तं सहहणं भावाणं तेसि-मधिगमो णाणं । चारित्तं समभावो विसयेसु विरूढ - मग्गाणं ।। १०७।।
सम्यक्त्वं श्रद्धानं भावानां तेषामधिगमो ज्ञानम् ।।
चारित्रं समभावो विषयेषु विरूढमार्गाणाम् ।। १०७।। भावाः खलु कालकलितपंचास्तिकायविकल्परूपा नव पदार्थाः । तेषां मिथ्यादर्शनोदयापादिताश्रद्धानाभावस्वभावं भावांतरं श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं, शुद्धचैतन्यरूपात्मतत्त्वविनिश्चयबीजम् । तेषामेव मिथ्यादर्शनोदयान्नौयानसंस्कारादि स्वरूपषिपर्ययेणाध्यवसीयमानानां तन्निवृत्ती समञ्जसाध्यवसायः सम्यग्ज्ञानं, मनाम्ज्ञानचेतनाप्रधानात्मतत्त्वोपलंभबीजम् । सम्यग्दर्शनज्ञानसन्निधानादमार्गेभ्यः समग्रेभ्यः परिच्युत्य स्वतत्त्वे विशेषेण रूढमार्गाणां सतामिन्द्रियानिदियविषयभूतेष्वर्थेषु रागद्वेषपूर्वकविकाराभावान्निर्विकारावबोधस्वभावः समभावश्चारित्रं, तदात्वायतिरमणीयमनणीयसोऽपुनर्भवसौख्यस्यैकबीजम् । इत्येष त्रिलक्षणो मोक्षमार्गः पुरस्तानिश्चयव्यवहाराभ्यां व्याख्यास्यते । इह तु सम्यग्दर्शनज्ञानयोर्विषयभूतानां नवपदार्थानामुपोद्घातहेतुत्वेन सूचित इति ।। १०७।।
अन्वयार्थ—( भावानां ) भावोंका ( नव पदार्थोका ) ( श्रद्धानं ) श्रद्धान ( सम्यक्त्वं ) सम्यक्त्व है, [ तेषाम् अधिगमः ] उनका अवबोध ( ज्ञानम् ) ज्ञान है, ( विरूढमार्गाणाम् ) मार्ग पर आरूढ को ( विषयेषु ) विषयोंके प्रति वर्तता हुआ ( समभावः ) समभाव ( चारित्रम् ) चारित्र है।