Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 286
________________ २८२ नवपदार्थ-मोक्षमार्ग वर्णन मोहरागद्वेषरूप परिणाम ( वह आस्रव है , समावे ( मोजाग वरूप परियार , जिना निमित्त हैं ऐसे जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणाम वह आस्त्रव है । जीवके मोहरागद्वेषरूप परिणामका निरोध ( वह संवर है ) तथा वह ( मोहरागद्वेषरूप परिणामका निरोध ) जिसका निमित्त है ऐसा जो योगद्वारा प्रविष्ट होनेवाले पुद्गलोंके कर्मपरिणामका निरोध वह संवर है । कर्मके वीर्यका ( कर्मकी शक्तिका ) शांतन ( नष्ट ) करने में समर्थ ऐसा जो बहिरंग और अंतरंग ( बारह प्रकारके ) तपों द्वारा वृद्धिको प्राप्त जीवका शुद्धोपयोग ( वह निर्जरा है ) तथा उसके प्रभावसे ( वृद्धि को प्राप्त शुद्धोपयोगके निमित्तसे ) नीरस हुए ऐसे उपार्जित कर्मपुद्गलोंका एकदेश संक्षय वह निर्जरा है। जीवके, मोहरागद्वेष द्वारा स्निग्ध परिणाम ( वह बंध है) तथा उनके (स्निग्ध परिणामोंके ) निमित्तसे कर्मरूप परिणत पुद्गलोंका जीवके साथ अन्योन्य अवगाहन वह बंध है । जीवकी अत्यंत शुद्ध आत्मोपलब्धि ( वह मोक्ष है ) तथा कर्मपुद्गलोंका जीवसे अत्यन्त विश्लेष ( वियोग ) वह मोक्ष है ।।१०८।। सं० ता०-अथानंतरं जीवादिनवपदार्थानां मुख्यवृत्या नाम गौणवृत्या स्वरूपं च कथयति, जीवाजीवौ द्वौ भावी पुण्यपापद्वयमिति पदार्थद्वयं आस्रवपदार्थस्तयो: पुण्यपापयोः, संवरनिर्जराबंधमोक्षपदार्थचतुष्टयमपि तयोरेव । एवं ते प्रसिद्धा नव पदार्था भवंतीति नामनिर्देशः । इदानों स्वरूपाभिधानं । तथाहि-ज्ञानदर्शनस्वभावो जीवपदार्थ;, तद्विलक्षण: पुद्गलादिपंचभेदः पुनरप्यजीव:, दानपूजाषडावश्यकादिरूपो जीवस्य शुभपरिणामो भावपुण्यं भावपुण्यनिमित्तेनोत्पन्न: सवद्यादिशुभप्रकृतिरूप: पुद्गलपरमाणुपिंडो द्रव्यपुण्यं, मिथ्यात्वरागादिरूपो जीवस्याशुभपरिणामो भावपार्प, तनिमित्तेनासवेद्याद्यशुभप्रकृतिरूप: पुद्गलपिंडो द्रव्यपापं, निरास्त्रवशुद्धात्मपदार्थविपरीतो रागद्वेषमोहरूपो जीवपरिणामो भावास्रवः, भावनिमित्तेन कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलानां योगद्वारेणागमनं द्रव्यास्रव:, कर्मनिरोधे समथों निर्विकल्पकात्मोपलब्धिपरिणामो भावसंवरः तेन भावनिमित्तेन नवतरद्रव्यकर्मागमनिरोधो द्रव्यसंवरः, कर्मशक्तिशांतनसमर्थों द्वादशतपोभिवृद्धिंगतः शुद्धोपयोग: यः सा संवरपूर्विका भावनिर्जरा तेन शुद्धोपयोगेन नीरसभूतस्य चिरंतनकर्मण एकदेशगलनं द्रव्यनिर्जरा, प्रकृत्यादिबंधशून्यपरमात्मपदार्थप्रतिकूलो मिथ्यात्वरागादिस्निग्धपरिणामो भावबंध:, भावबंधनिमित्तेन तैलम्रक्षितशरीरे धूलिबंधवज्जीवकर्मप्रदेशानामन्योन्यसंश्लेषो द्रव्यबंध:, कर्मनिर्मूलनसमर्थः शुद्धात्मोपलब्धिरूपजीवपरिणामो भावमोक्ष:, भावमोक्षनिमित्तेन जीवकर्मप्रदेशानां निरवशेषः पृथाभावो द्रव्यमोक्ष इति सूत्रार्थ: ।।१०८॥ एवं जीवाजीवादिनवपदार्थानां नवाधिकारसूचनमुख्यत्वेन गाथासूत्रमेकं गतं । हिंदी ता०-उत्थानिका-आगे जीव आदि नव पदार्थोके मुख्यतासे नाम तथा गौणतासे उनका स्वरूप कहते हैं अन्वय सहित सामान्यार्थ-( जीवाजीवा भावा) जीव और अजीव पदार्थ ( पुण्णं

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