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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन ज्ञानकी अपेक्षा श्रुतज्ञान और केवलज्ञान दोनों ही समान होते हैं तो भी श्रुतज्ञान परोक्ष है, तथा केवलज्ञान प्रत्यक्ष है ।।९।।
इस तरह प्रकारांतर से मूर्त अमूर्तका स्वरूप कथन करते हुए गाथा समाप्त हुई। व्यवहारकालस्य निश्चयकालस्य च स्वरूपाख्यानमेतत् । कालो परिणाम-भवो परिणामो दव्य-काल-संभूदो । दोण्हं एस सहावो कालो खण-भंगुरो णियदो ।।१०।।
कालः परिणामभवः परिणामो द्रव्यकालसंभूतः ।।
द्वयोरेष स्वभावः कालः क्षणभंगुरो नियतः ।।१००।। तत्र क्रमानुपाती समयाख्यः पर्यायो व्यवहारकालः, तदाधारभूतं द्रव्यं निश्चयकालः । तत्र व्यवहारकालो निश्चयकालपर्यायरूपोपि जीवपुद्गलानां परिणामेनावच्छिद्यमानत्वात्तत्परिणामभव इत्युपगीयते, जीवपुद्गलानां परिणामस्तु बहिरंगनिमित्तभूतद्रव्यकालसद्भावे सति संभूतत्वाद् द्रव्यकालसंभूत इत्यभिधीयते । तत्रेदं तात्पर्य व्यवहारकालो जीवपुद्गलपरिणामेण निधीयते, निश्चयकालस्तु तत्परिणामान्यथानुपपत्त्येति । सत्र क्षणभंगी व्यवहारकालः सूक्ष्मपर्यायस्य तावनमात्रत्वात्, नित्यो निश्चयकालः स्वगुणपर्यायाधारद्रव्यत्वेन सर्वदैवाविनश्वरतत्वादिति ।।१०।।
अन्वयार्थ- कालः परिणामभव: ] काल परिणामसे उत्पन्न होता है ( अर्थात् व्यवहारकालका माप जीव-पुद्गलोंके परिणाम द्वारा होता है ।) [ परिणाम: द्रव्यकालसंभूतः ] परिणाम द्रव्यकालसे उत्पन्न होता है। -[ द्वयोः एषः स्वभावः ] यह दोनोंका स्वभाव है। ( काल: क्षणभंगुर: नियत: ) काल क्षणभंगुर तथा नित्य है।
टीका-यह, व्यवहारकाल तथा निश्चयकालके स्वरूपका कथन है ।
वहाँ, 'समय' नामकी जो क्रमिक पर्याय सो व्यवहारकाल है, उसके आधारभूत द्रव्य सो निश्चय काल है।
वहाँ, व्यवहारकाल निश्चयकालको पर्यायरूप होने पर भी जीव-पुद्गलोंके परिणामसे मपता है ज्ञात होता है, इसलिये “जीव पुद्गलोंके परिणामसे उत्पन्न होनेवाला' कहलाता है, और जीव पुद्गलोके परिणाम बहिरंग-निमित्तभूत द्रव्यकालके सद्भावमें उत्पन्न होनेके कारण "द्रव्यकालसे उत्पन्न होनेवाले" कहलाते हैं। वहाँ तात्पर्य यह है कि व्यवहारकाल जीव-पुद्गलोंके परिणाम द्वारा निश्चित होता है, और निश्चयकाल जीव-पुद्गलोंके परिणामकी अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा ( अर्थात् जीव-पुद्गलोंके परिणाम अन्य प्रकारसे नहीं बन सकते इसलिये ) निश्चित होता है।